Dakshin Bharat Ke Sant-Mahatma 1 (Karnataka)
दक्षिण भारत के संत-महात्मा भाग 1 (कर्नाटक)संत-महात्मा पूरे भारत में हुए हैं और उनका उपदेश भी एक-सा रहा है। राधास्वामी सत्संग ब्यास द्वारा उत्तरी भारत के संत-महात्माओं से संबंधित कई पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं परंतु दक्षिणी भारत के संतों के जीवन और उपदेश पर आधारित यह पहली पुस्तक है। यह पुस्तक तीन प्रमुख संतों के बारे में है जिनकी बोलचाल की भाषा कन्नड़ थी। इनकी रचनाएँ भी कन्नड़ भाषा में हैं जो कर्नाटक प्रदेश की मुख्य भाषा है। इनमें से दो संत पुरंदरदास और कनकदास सोलहवीं शताब्दी में हुए हैं जिनकी प्रसिद्धि पूरे दक्षिणी भारत में है। पुरंदरदास के ‘कीर्त्तन’ बहुत लोकप्रिय हैं और ये कर्नाटक संगीत का अटूट अंग हैं। हालाँकि तीसरे संत शिशुनाल शरीफ़ (उन्नीसवीं शताब्दी) इन दो संतों की तरह प्रसिद्ध नहीं हुए, किंतु उनका उपदेश भी बहुत गूढ़ है। उनका जीवन और उनकी रचनाएँ संत कबीर की याद दिलाती हैं।Mystics and saints have existed in every part of India, and their teachings are one and the same. While RSSB has published a large number of books on mystics who lived in the North, this is the first one to deal with the life and teachings of mystics in the South. It focuses on three of them who wrote and spoke in Kannada, the most prominent language of the state of Karnataka. Two of them, Purandara Dasa and Kanaka Dasa, lived in the sixteenth century, and are quite well known all over South India. Purandara Dasa's keertanas are very popular, and form an integral part of Carnatic music. The third, Shishunala Sharif, is not as well-known as the other two, but his teachings are nevertheless very profound. His background and poetry reminds one of Kabir. Author: Dr. N. Subrahmanyam, P. Aravinda Rao, K. G. RamaprakashCategory: Mystic Tradition Format: Paperback, 224 Pages Edition: 1st, 2021 ISBN: 978-93-89810-36-3 RSSB: HI-279-1 Price: USD 7 including shipping. Estimated price: EUR 6.62, GBP 5.75 |