संत सुन्दरदास
संत सुन्दरदास का जन्म जयपुर में हुआ। वह बहुत कम आयु में दादू दयाल जी की शरण में आए और उनके शिष्य बन गए। बाद में उन्होंने राजस्थान में फतेहपुर नामक स्थान पर अपने मुख्य आध्यात्मिक केंद्र की स्थापना की और राजस्थान तथा पंजाब में दीक्षा देनी आरंभ की। संत सुन्दरदास की पैंतीस से अधिक रचनाएँ हैं। प्रस्तुत पुस्तक उनकी प्रसिद्ध रचना ‘सुन्दर ग्रंथावली’पर आधारित है। संत सुन्दरदास ने इस बात पर बल दिया है कि केवल परमात्मा ही सत्य है और संसार मिथ्या तथा नश्वर है। उनकी वाणी में मनुष्य जन्म के उद्देश्य,देहधारी सतगुरु के महत्त्व और नाम अथवा शब्द के भेद को उजागर किया गया है। वह स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सतगुरु की शरण मुक्ति का द्वार है। सतगुरु के मार्गदर्शन में ही जीव नामभक्ति द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है। Born in Jaipur, Sundardas became a disciple of Dadu Dayal at a young age. Later he established his spiritual headquarters at Fatehpur in Rajasthan and gave initiation in Rajasthan and the Punjab. Sant Sundardas wrote more than 35 books. The present book is based on his famous collection of poetry, Sundar Granthavali. Sant Sundardas emphasizes that the Lord is the only truth and that the world is false and transient. His poems speak of the importance and purpose of human life, the living master, and the mystery of the Nam or Word. He emphatically says the refuge of the master is a gateway to liberation; under the master’s guidance, one should engage in devotion to Nam and attain spiritual awakening. Author: K.N.Upadhyaya
Category: Mystic Tradition
Format: Paperback, 200 Pages
Edition: 1st, 2021
ISBN: 978-81-952612-1-5
RSSB: HI-280-0
Price: USD 6 including shipping.
Estimated price: EUR 5.68, GBP 4.93
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